देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से 12 से 18 सितंबर तक दिल्ली में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कथा के पंचम दिवस साध्वी आस्था भारती ने वेणुगीत का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से कह सुनाया। कान्हा के अधरों पर सजी विश्व-मोहिनी बाँसुरी पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। वह प्रभु के हाथों का यंत्र है। बाँसुरी संदेश दे रही है कि स्वयं को मिटाकर ही आप प्रभु के हाथों में सज सकते हैं। स्वयं के जीवन को विकारों से रिक्त कर आपका जीवन भी बाँसुरी जैसी मीठी तान छेड़ता है। इसके बाद श्रीकृष्ण का मथुरा गमन व कंस वध की कथा को बाँचा गया। कंस ने अपनी बुद्धि के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को समझने का प्रयास किया था, इसलिए भ्रमित हो गया। यही भूल आज का इंसान भी करता हैद्य सदैव परमात्मा को अपनी बुद्धि के द्वारा ही समझना चाहता है, जो संभव नहीं है। एक दार्शनिक ने सटीक कहा है- आप उस चिमटे के द्वारा वह हाथ नहीं पकड़ सकते, जिस हाथ ने स्वयं चिमटे को पकड़ा हुआ है। अर्थात जो इंद्रियाँ स्वयं उस ईश्वर की शक्ति से कार्यरत हैं, उनके माध्यम से ईश्वर को देखना, उनकी लीलाओं को समझ पाना असंभव है। इस साक्षात्कार के लिए हमें सूक्ष्म साधन चाहिए और वह है दिव्य दृष्टि… पूर्ण सद्गुरु ही इस तृतीय नेत्र को उन्मीलित कर शिष्य को उसकी शक्तियों के अनंत स्त्रोत, उस सच्चिदानंद प्रभु से जोड़ देते हैं।
साध्वी ने भावी पीढ़ी के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि युवा किसी भी राष्ट्र की शक्ति हुआ करती हैद्य आप एक बज़्ज़ार्ड पक्षी को 6 से 8 फीट चौड़े डिब्बे में रख दीजिए। भले ही वह डिब्बा ऊपर से खुला होगा, तब भीवह पक्षी वहाँ से नहीं उड़ेगा। कारण? बज़्ज़ार्ड हमेशा 10-12 कदम दौड़ लेने पर ही उड़ान भर पाता है। डिब्बे में दौड़ने के लिए पर्याप्त स्थान न देखकर वह उड़ने तक की कोशिश ही नहीं करताद्य बावजूद इसके कि उसके पास उड़ने के लिए पंख और रास्ता दोनों मौजूद हैं।