गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी
(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)
गणतंत्र दिवस भारत देश का एक राष्ट्रीय पर्व है। जो प्रतिवर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को एक लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ लागू किया गया था। उसी प्रकार से हमारे जीवन पर भी एक आध्यात्मिक गणतंत्र लागू होता है। जिसके विषय में हममें से अधिकांश लोग अनभिज्ञ है। जिसकी आज के परिपेक्ष्य में नितांत आवश्यकता भी है। ऐसी शिक्षा-नियम जिससे मनुष्य का भीतरी विकास हो सकता है। अध्यात्म जो हमारी भारतीय संस्कृति का मूल है उसी की आवश्यकता है हमारे जीवन पर लागू करने की। ऐसा न हो हम अपने जीवन को इसी तरह बदरंग देखते जाए और पतन की खाइयों की ओर ले जाएँ। इसीलिए समझना होगा आखिर वह कौन-सी शिक्षा है जिसके विषय में हमारे शास्त्र-ग्रंथ कहते है- सा विद्या या विमुक्तये। विद्या वह है जो मुक्ति प्रदान करें। जो केवल हमारा बाहरी विकास ही नहीं करती अपितु हमारा आंतरिक विकास भी कर देती है। ऐसी ही विद्या की आवश्यकता है। यह बताना चाहेंगे कि आंतरिक विकास मात्र शिक्षा से नहीं हो सकता। उसके साथ-साथ दीक्षा का समन्वय बहुत जरूरी है। दीक्षा को परिभाषित करते हुए हमारे वेद-उपनिषद बहुत अच्छा कहते है- जिस प्रकार से भस्म आच्छादित अग्नि मुख प्रेरित वायु से दहक उठती है। सही समय पर बोया हुआ बीज पल्लवित एवं पुष्पित हो जाता है। ठीक उसी प्रकार से गुरु के द्वारा उपदिष्ट ज्ञान प्रदत्त आत्मज्ञान एक व्यक्ति/शिष्य/छात्र के जीवन में गुणों को रोपित करता है। आज हर व्यक्ति ढाँचों को बदलने का प्रयास कर रहा है। लेकिन ढाँचों में परिवर्तन लाना है तो पहले साँचो में परिवर्तन लाना होगा। इसीलिए शास्त्रों-वेदों-ग्रंथो ने उद्घोष किया कि आचार्यों को पहले स्वयं बाहरी ज्ञान के साथ-साथ उन्हें आंतरिक ज्ञान होना चाहिए फिर वो एक छात्र का पूर्ण और विकसित विकास कर सकते है। आज हमें भी समाज में ऐसी नवीन प्रणाली की आवश्यकता है जो हमारे बच्चों का पूर्ण रूप से विकास करें। उनमें पूर्ण व्यक्तित्व का आगाज करें। ऐसे पूर्ण व्यक्तित्व निर्माण का बेड़ा उठाया है परम श्रद्धेय सर्वश्री आशुतोष महाराज जी ने दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा। महाराज जी की कृपा हस्त तले गठन हुआ एक ऐसे प्रकल्प का जिसका नाम है श्मंथनश्। एक ऐसा शिक्षा प्रकल्प जिसमें गुरु महाराज जी की कृपा से ऐसे शिक्षक है जो स्वयं भीतर से जुड़े है और विद्यार्थियों को भी भीतर से जोड़ने का दम रखते है। महाराज जी अकसर कहते हैं- पूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण के लिए बाहरी शिक्षा और भीतरी दीक्षा दोनों का होना आवश्यक है। यही कारण है कि आज महाराज जी समाज के प्रत्येक प्राणी को उस ज्ञान के साथ जोड़ रहे है। तभी व्यक्ति के जीवन का आध्यात्मिक गणतंत्र लागू हो रहा है और व्यक्ति समाज के निर्माण में सहयोग दे पा रहा है। भारत अपने आप में एक रची बसी संस्कृति का प्रतीक है। भारत = भा़+रत भा अर्थात् प्रकाश, रत अर्थात् लीन रहने वाला। भारतवासी जो हमेशा ईश्वरीय प्रकाश में रत है वही भारतीय है। ऐसा देश जिसका नाम ही उसकी कांति व गरिमा को वर्णित करता है। सत्य के आदि स्त्रोत होने की महिमा को प्रस्फुटित करता है। और यही आध्यात्मिक गणतंत्र व्यक्ति के लिए जीवन का आवश्यक अंग है। तभी हमारा जीवन पुर्णत्व को प्राप्त कर पाता है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।