कोरोना महामारी की दूसरी लहर में फंगस के मामले अस्पतालों में बढ़ने लगे थे। पिछले काफी समय से संक्रमण दर एक फीसदी से नीचे है, लेकिन दिल्ली के अस्पतालों में फंगस के रोगी अब भी मौत से जंग लड़ रहे हैं। इन्हीं संक्रमित मरीजों पर मैक्स अस्पताल का पहला चिकित्सीय अध्ययन सामने आया है, जिसमें कोरोना संक्रमण की तुलना में फंगस से मृत्युदर डेढ़ गुना अधिक दर्ज की गई है। अस्पताल में भर्ती 17 फीसदी मरीजों की मौत हुई जोकि अब तक की तुलना में सर्वाधिक है।
मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशन से पूर्व समीक्षात्मक इस अध्ययन के अनुसार मार्च से 15 जुलाई के बीच मैक्स अस्पतालों में 155 मरीज भर्ती हुए थे। इन मरीजों पर जब अध्ययन शुरू हुआ तो 125 मरीजों में फंगस की पहचान हुई लेकिन 30 मरीजों के बारे में पता नहीं चल सका। इन मरीजों को संदिग्ध मानते हुए फंगस की तरह उपचार दिया गया। दो तिहाई से अधिक (69 फीसदी) मरीज पुरुष थे जिनकी आयु 53 वर्ष औसतन दर्ज की गई। फंगस रोगियों में 64.5 फीसदी में नाक और जबड़े से जुड़े लक्षण दर्ज किए गए। जबकि 42.60 फीसदी मरीजों की आंख में संक्रमण देखने को मिला। डॉक्टरों के अनुसार कुछ मरीजों में एक से अधिक लक्षण थे। हालांकि मधुमेह को लेकर स्थिति देखें तो 78.7 फीसदी में यह बीमारी पहले से थी। वहीं 91.60 फीसदी मरीजों ने अस्पतालों में भर्ती होने के बाद यह स्वीकार किया कि कोरोना संक्रमण होने के बाद उन्होंने स्टेरॉयड युक्त दवाओं का सेवन किया था। डॉक्टरों ने यह भी बताया कि फंगस से संक्रमित 83.9 फीसदी मरीजों की सायनस की सर्जरी की गई। जबकि 16.80 फीसदी मरीजों की उपचार के दौरान मौत हो गई। मैक्स अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों की तुलना में फंगस से मृत्युदर डेढ़ गुना अधिक दर्ज की गई। वरिष्ठ डॉ. संदीप बुद्घिराजा ने अध्ययन में कहा है कि म्यूकरमाइकोसिस (फंगस) मधुमेह और स्टेरॉयड युक्त दवाओं के अधिक इस्तेमाल से जुड़ा है लेकिन इससे संक्रमित मरीजों में अधिक मृत्युदर क्यों है? इसका कारण पता नहीं चल सका। अलग अलग दवाओं देने के बाद भी इन मरीजों में मौत की आशंका को कम नहीं किया जा सका।