केदारनाथ यात्रा मार्ग पर 2890 पशुओं का उपचार कर उनकी प्राणरक्षा की गई

उत्तराखण्ड

रुद्रप्रयाग। केदारनाथ यात्रा अपने चरमोत्कर्ष पर है तथा यात्रा की रीढ़ माने जाने वाले घोड़े-खच्चरों को प्रदान की जा रही पशुचिकित्सा सेवाओं एवं यात्रा मार्ग पर अश्व कल्याणार्थ अन्य सुविधाओं हेतु पशुपालन विभाग एवं जिलाधिकारी मयूर दीक्षित के निर्देशन में किए जा रहे सराहनीय नवीन प्रयास चर्चा का विषय हैं। यात्रा में यात्री परिवहन एवं माल ढुलान हेतु बड़ी संख्या में घोड़े-खच्चरों का प्रयोग किया जाता है। यात्रा में प्रयुक्त होने वाले घोड़े-खच्चरों की स्वास्थ्यरक्षा एवं अश्वकल्याण संबंधी अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने हेतु पशुपालन विभाग एवं जिला प्रशासन द्वारा इस वर्ष यात्रा प्रारंभ होने से पूर्व से ही कमर कस ली गई थी। इस वर्ष विभाग द्वारा अपनी सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सराहनीय प्रयास किए जा रहे हैं जिनके सुखद परिणाम भी आ रहे हैं।
इस आशय की जानकारी देते हुए मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डाॅ. अशोक कुमार ने अवगत कराया है कि घोडे़-खच्चरों के संचालन हेतु इस वर्ष शासन द्वारा एस.ओ.पी. निर्धारित की गई है जिसका पूर्ण रूप से पालन किया जा रहा है, जिसमें यात्रा ट्रैक की अधिकतम क्षमता भी निर्धारित की गई हैै। पशुपालन विभाग द्वारा केदारनाथ यात्रा मार्ग पर सोनप्रयाग गौरीकुण्ड, लिनचोली एवं केदारनाथ में अस्थाई पशु चिकित्सालय संचालित किए जा रहे हैं। जिनके माध्यम से यात्रा मार्ग पर चलने वाले घोड़े-खच्चरों को पशुचिकित्सा सुविधाएं दी जा रही हैं। साथ ही प्रतिदिन मार्ग पर चलने वाले घोड़े-खच्चरों का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जा रहा है। घोड़े-खच्चरों हेतु गत वर्ष मात्र 4 पशुचिकित्सकों को नियुक्त किया था जबकि इस वर्ष विभाग द्वारा कुल 7 पशुचिकित्सक एवं 5 पैरावेट यात्रा मार्ग पर पशुचिकित्सा उपलब्ध कराने एवं पशुओं के स्वास्थ्य जांच हेतु नियुक्त किए गए हैं। सोनप्रयाग, श्री केदारनाथ एवं लिनचोली में एक-एक पशुचिकित्सक तथा यात्रा के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में 04 पशुचिकित्सक तैनात किए गए हैं जिनके द्वारा 24 घंटे पशु चिकित्सा सुविधा उपलबध करवाने के साथ ही पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का भी अनुपालन करवाया जा रहा है। जिला पंचायत द्वारा यात्रा मार्ग पर चलने वाले घोड़े-खच्चरों का पंजीकरण एवं विनियमन किया जा रहा है तथा यात्राकाल में नियमों का उल्लंघन करने पर वैधानिक कार्यवाही भी की जा रही है। विभागीय पशुचिकित्सकों द्वारा 24 घंटे पशुचिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करवाते हुए सोनप्रयाग में 444, गौरीकुंड में 1721, लिनचोली 398 एवं केदारनाथ में 327 घोड़े-खच्चरों सहित यात्रा मार्ग पर कुल 2890 पशुओं का उपचार कर उनकी प्राणरक्षा की जा चुकी है। प्रथम बार सभी घोड़े-खच्चरों की ग्लैण्डर्स जांच भी करवाई गई है। यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों को इनडोर सुविधा सहित बेहतर पशुचिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करवाने हेतु वृहद इनफर्मरी हेतु सोनप्रयाग में भूमि का चयन कर लिया गया है तथा वहां अतिक्रमण को हटवाने की कार्यवाही गतिमान है ताकि निर्माण संबंधी कार्यवाही प्रारंभ करवाई जा सके।
घोड़े-खच्चरों को ठंडा पानी पीने से होने वाले कोलिक रोग से बचाव हेतु यात्रा मार्ग के 18 स्थानों पर गीजर युक्त गर्म पानी की चरहियां संचालित की जा रही हैं जिनकी देख-रेख म्यूल टास्क फोर्स के जवानों के सुपुर्द की गई है तथा घोड़े-खच्चरों को रूकवा कर पानी पिलवाया जा रहा है। गर्म पानी की चरहियां का रख-रखाव जल संस्थान एवं उरेडा द्वारा किया जा रहा है तथा सुलभ इन्टरनेशनल संस्था द्वारा चरहियों की सफाई व्यवस्था देखी जा रही है।
साथ ही प्रतिदिन यात्रा मार्ग पर चलने वाले घोड़े-खच्चरों का स्वास्थ परीक्षण भी किया जा रहा है जिसमें अनुपयुक्त पाए गए कुल 300 घोड़े-खच्चरों को यात्रा से निरुद्ध किया जा चुका है तथा कुल 213 घोड़े-खच्चर मालिकों के विरुद्ध चालानी कार्यवाही तथा पशु क्रूरता अधिनियम के अंतर्गत कुल 16 प्राथमिकी भी दर्ज की गई हैं। श्री केदारनाथ यात्रा 2023 में अश्व-कल्याण हेतु किए जा रहे प्रयासों की जिलाधिकारी स्तर से लेकर सचिव पशुपालन स्तर तक एवं पशुपालन मंत्री द्वारा भी निरंतर निगरानी की जा रही है। प्रशासन एवं विभागीय प्रयासों का ही परिणाम है कि इस वर्ष यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की मृत्युदर में उल्लेखनीय कमी आई है। यात्रा के प्रथम 60 दिनों में विगत वर्ष में 194 घोड़े-खच्चरों की मृत्यु के सापेक्ष इस वर्ष 90 पशुओं की मृत्यु हुई है। यात्रा मार्ग पर अश्व-कल्याण हेतु प्रशासन एवं विभिन्न विभागों का मूल लक्ष्य भी यही है कि घोड़े-खच्चरों की मृत्यु दर न्यूनतम रखते हुए यात्रा को घोड़े-खच्चरों के साथ तीर्थ यात्रियों के लिए भी सुगम बनाया जा सके जिससे यात्रि श्री केदारनाथ से सुखद अनुभव एवं स्मृतियां लेकर जाएं।

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