देहरादून। जलवायु परिवर्तन के कारण जहाँ एक ओर आज उच्च हिमालयी क्षेत्र में वर्तमान में पूर्व में बर्फवारी के स्थान पर वर्षा होने लगी है, वही दूसरी ओर बढ़ रहे तापमान के कारण हिमनद के गलने की दर में वृद्धि होने के साथ ही हिमनद तेजी से पीछे होते जा रहे हैं। ग्लेशियरों द्वारा खाली किये गये स्थानों पर हिमनदों द्वारा लाये गये मलबे के बांध या मोरेन के कारण बने कुछ जलाशयों का आकार वर्षा व हिमनदों के गलने के कारण तेजी से बढ़ रहा है। एक सीमा के बाद बढ़ रहे पानी का दबाव मलवे के बांध को तोड़ कर नीचे बसे इलाकों में बाढ़ का कारण बन सकता है। वर्ष 2013 में केदारनाथ में घटित घटना इसी का एक उदाहरण है। हालांकि वर्ष 2021 में धोलीगंगा वाली बाढ़ ग्लेशियर झील के कारण नहीं आई किन्तु, वह घटना भी उच्च हिमालयी क्षेत्र में आये हिम-स्खलन के कारण घटित हुयी थी। अभी हाल में 04 अक्टूबर, 2023 को सिक्किम राज्य के साऊथ लोहनक झील के टूटने से तिस्ता नदीं में काफी नुकसान हुआ था।
इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने तथा घटित होने की स्थिति में प्रभावित हो सकने वाले जन समुदाय को समय से चेतावनी जारी किये जाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण, भारत सरकार द्वारा एक समिति (सी.ओ. डी०आर.आर.) का गठन किया गया है, जिसके द्वारा उत्तराखण्ड राज्य में जोखिम सम्भावित 13 ग्लेशियर झीलों को चिह्नित किया गया है। सचिव, आपदा प्रबन्धन एवं पुनर्वास विभाग यू०एस०डी०एम०ए० द्वारा इसके सम्बन्ध में सम्बन्धित संस्थानों के साथ समीक्षा हेतु एक महत्वपूर्ण बैठक ली गयी।
आईआईआरएस द्वारा बताया गया कि उनके द्वारा भागीरथी, मन्दाकिनी, अलकनन्दा नदियों के निकट ग्लेशियर झीलों की निगरानी की जा रही है, जिसमें पाया गया कि केदारताल, मिलना व गोरीगंगा ग्लेशियर का क्षेत्र निस्तर निस्तृत होता जा रहा है, जो कि आने वाले समय में आपदा के जोखिम के प्रति संवेदनशील है। ग्लेशियर झीलों के अध्ययन में कार्यरत संस्था द्वारा बताया गया कि उनके द्वारा सिक्किम राज्य के 03 प्रभावित ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने के लिये स्वयं निर्मित अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया गया तथा झीलों की गहराई नापने हेतु धिमेट्री तर्न किया नया जिससे प्राप्त आंकड़ों की सहायता से झीलों में हो रहे परिवर्तन पर निरंतर निगरानी रखी जा रही है। सचिव आपदा प्रबन्धन द्वारा निर्णय लिए नया कि ग्लेशियरों की निगरानी हेतु एक मल्टी डिसीपिसिनरी टीम गठित की जाये, जिसमें यूएसडीएमए के द्वारा नोडल विभाग के रूप में कार्य किया जायेगा जो अध्ययन करेंगी एवं तत्पश्चात रिपोर्ट भारत सरकार को भी भेजी जायेगी एवं मार्ग दर्शन प्राप्त करते हुवे ग्लेशियर लेज से उत्पन्न होने वाली आपदाओं का प्रभावी नियंत्रण के लिए कार्य किया जायेगा।