“बौद्धिक संपदा अधिकार की भूमिका और कृषि और संबद्ध क्षेत्र में उनका महत्व” पर नाबार्ड द्वारा क्षेत्रीय सलाहकार समूह की बैठक का आयोजन

उत्तराखण्ड

देहरादून। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने बुधवार को देहरादून में अपने क्षेत्रीय कार्यालय में कृषि क्षेत्र में बौद्धिक संपदा अधिकार पर क्षेत्रीय सलाहकार समूह की बैठक आयोजित की । बैठक की अध्यक्षता नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक डॉ ज्ञानेन्द्र मणि ने की और मुख्य अतिथि के रूप में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ए के कर्नाटक उपस्थित रहे। साथ ही कृषि, बागवानी एवं पंतनगर विश्वविद्यालय के बौद्धिक सम्पदा इकाई विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ एम एस नेगी, डॉ. सी. तिवारी, निदेशक एक्सटेंशन, उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, डॉ. ए.के. शर्मा, निदेशक एक्सटेंशन, पंतनगर विश्वविद्यालय, कृषि निदेशक डॉ. के.सी. पाठक,  राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति के संयोजक, केवीके के प्रतिनिधि, उत्तराखंड ग्रामीण बैंक के महाप्रबंधक, उत्तराखंड राज्य सहकारी बैंक के एजीएम, प्रगतिशील किसान पद्मश्री प्रेमचंद शर्मा व कुंदन सिंह पंवार, एपीएमसी के जेई व एनजीओ के प्रतिनिधि तथा नाबार्ड के वरिष्ठ अधिकारी कार्यक्रम में शामिल हुए। राज्य के सभी जिलों के जिला विकास प्रबंधक भी ऑनलाइन रूप से कार्यक्रम में जुडें। ए.पी दास, मुख्य महाप्रबंधक, नाबार्ड ने सभी सदस्यों का स्वागत करते हुए बैठक के विषय के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि नाबार्ड की ओर से वर्ष 2017 में क्षेत्रीय सलाहकार समूह का गठन किया गया था जिसका मुख्य उद्देश्य, हितधारकों के साथ परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से, किसानों के मुद्दों को हल करने की दिशा में नीति निर्धारण, आवश्यक सुझाव और जमीनी स्तर की जानकारी लेना है । आज के अत्याधुनिक युग में उत्तराखंड के किसानों एवं कास्तकारों को किस तरीके से आईपीआर का फायदा मिल सके, इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एवं कार्यान्वयन योग्य योजना बनाने के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 की प्रथम आरएजी बैठक का विषय “बौद्धिक संपदा अधिकार की भूमिका और कृषि और संबद्ध क्षेत्र में उनका महत्व” रखा गया है । अपने संबोधन में डॉ ज्ञानेन्द्र मणि, मुख्य महाप्रबंधक, नाबार्ड ने बताया कि यह सुखद संयोग ही है कि बुधवार को जिस विषय पर आरएजी की बैठक हो रही है, उस पर आज ही के दिन सन् 1952 में पहला कॉपीराइट सम्मेलन जेनेवा में हुआ था जिसमें भारत सहित 36 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। भारत वर्ष में बौद्धिक सम्पदा के संबंध में धीमी गति से कार्य हो रहा है जबकि जर्मनी जैसे देश इस क्षेत्र में अग्रणी है, उन्होंने बताया कि विश्व भर में लगभग 58000 भौगोलिक संकेतक का 57 प्रतिशत वाइन व स्प्रिरिट उत्पादों के लिए जारी किए गए हैं। वहीं भारत में कुल 370 जीआई टैगिंग का 56 प्रतिशत हैंडिक्राफ्ट तथा 34 प्रतिशत कृषि एवं संबंद्ध उत्पादों को जारी किया गया है।  इसके अलावा उन्होंने बताया कि नाबार्ड कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र में किसानों एवं कास्तकारों की आय वृद्धि के लिए उनके अद्वितीय उत्पादों के जीआई के लिए पूर्व-पंजीकरण के साथ-साथ पंजीकरण के बाद की गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता करता है । नाबार्ड की ओर से अब तक देश के विभिन्न राज्यों में 72 उत्पादों के जीआई पंजीकरण के लिए सहायता प्रदान की है। उत्तराखंड में पिथौरागढ़ जिले के 7 उत्पादों (ऐपण, कुमाऊँ च्यूरा, मुंस्यारी राजमा, रिंगाल हस्तशिल्प, थुलमा, टम्टा उत्पाद एवं ज्यां साल्ट टी) के जीआई टैगिंग के लिए सहायता प्रदान की है ।

इसके बाद डॉ एम एस नेगी, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, आईपीआर प्रबंध केंद्र, पंतनगर विश्वविद्यालय ने बौद्धिक संपदा अधिकार की भूमिका और कृषि और संबद्ध क्षेत्र में उनका महत्व पर एक विस्तृत प्रस्तुति। जिसमें उन्होंने बताया कि बौद्धिक संपदा (आईपी) एक ब्रांड, आविष्कार, डिजाइन या अन्य प्रकार की रचना है, जिसपर किसी व्यक्ति या व्यवसाय का कानूनी अधिकार होता है । आईपी मुख्यतः कॉपीराइट, पेटंट, ट्रेडमार्क, जिओग्राफिकल इंडिकेटर इत्यादि के रूप में होती है । उन्होंने पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम -2001 के बारे में विस्तार से जानकारी दी, उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के कृषक अधिनियम का लाभ ले सकते हैं। साथ ही नाबार्ड की ओर किसानों को बौद्धिक संपदा का फायदा एवं बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड की विभिन्न योजनाओं पर प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के खुले सत्र के दौरान पद्मश्री प्रगतिशील किसान प्रेमचंद शर्मा ने उत्पादों को उचित बाजार उपलब्ध करवाने का सुझाव दिया ताकि लाल भिंडी, चौरी टमाटर जैसे कृषि उत्पादों का सही मूल्य मिल सके। वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड औद्यानिकी एवं वानिकी विश्ववद्यालय के कुलपति डॉ ए के कर्नाटक ने अपने अभिभाषण में कहा कि नाबार्ड संस्था कृषकों के लिए एक वरदान है। उत्तराखंड में कृषक की आय मात्र 66000 रुपये प्रतिवर्ष है जोकि आजीविका के लिए पर्याप्त नहीं है। किसानों को कृषि पद्धयती में बदलाव लाने की आवश्यकता है। साथ ही कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कम से कम 20 प्रतिशत बीज प्रतिस्थापन करना आवश्यक है, माल्टा की उन्नत किश्मों को अपनाया जाना चाहिए, किसानों को वर्षों से कर रहे एक जैसी खेती की बजाय बाजार की मांग के अनुसार खेती करनी चाहिए जिसमें कीवी की फसल फायदे मंद होगी जो जंगली जानवर की ओर से फसल खराब करने के खतरे को भी कम कर सकती है। सेब के पुराने बगीचों का कायाकल्प करने तथा हिमाचल के किसानों से अच्छी पद्धति को सीखने की सलाह दी। राज्य की कुछ परंपरागत फसलों को नया रूप देने की जरूरत पर बात करते हुए कहा कि हमें बुरांश, लाल चावल, किलमोड़ा, काफल की खाल, जकुनी आदि को बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन करना होगा। उन्होंने बताया कि वैश्विक बौद्धिक संपदा सूचकांक में भारत काफी पीछे है। बौद्धिक संपदा के संरक्षण के लिए हमें प्रकिया को सरल व स्थानीय भाषा में तैयार कर किसानों के बीच जागरूकता पैदा करनी होगी। साथ ही  केवीके, विश्वविद्यालयों व कृषि विभाग सभी को मिलकर नवाचार के क्षेत्र में किसानों की मदद करनी होगी। जीआई टैगिंग में नाबार्ड वित्तीय सहायता देकर राज्य के उत्पादों को नई पहचान दे रहा है। चमोली के तेज पात का पंजीकरण होने से उस क्षेत्र के तेज पात के उत्पाद की मांग बढ़ी है। कार्यक्रम में एपेड़ा के एजीएम, यूजीबी के महाप्रबंधक, एसएलबीसी के समंनव्यक, कृषि विभाग के निदेशक ने भी अपने विचार रखे। अंत में कार्यक्रम महाप्रबंधक भास्कर पंत के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

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