भारतीय नववर्ष – भव्य संस्कृति व सभ्यता का स्वर्ण दिवस

उत्तराखण्ड

श्री आशुतोष महाराज जी
(संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)

क्या आप जानते हैं? विक्रम संवत्‌ 2080 की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, याने 22 मार्च को हमारे भारतवर्ष के नववर्ष का आरंभ है? यह तिथि एक प्रकार से हमारी भव्य संस्कृति व सभ्यता का स्वर्ण दिवस है। भारतीय गरिमा में निहित अध्यात्म व विज्ञान से परिचित होने और गर्व करने का अवसर है।
भारतीय कैलेंडर के अनुसार जिस दिन सृष्टि का आरम्भ हुआ, उसे ही नववर्ष के प्रथम दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। इसका अनुसरण करते हुए- महाराजा विक्रमादित्य ने 2080 वर्ष पूर्व एक कैलेंडर की शुरुआत की, ताकि हम अपनी भारतीय तिथियों, महीनों व वर्षों से परिचित रहें। इस विक्रमी संवत्‌ के हिसाब से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भारतीय नववर्ष का पहला दिवस स्वीकार किया गया।
वहीं दूसरी ओर, ग्रेगोरियन कैलेंडर, जिसे हम पाश्चात्य अंधानुकरण के कारण मानने लगे हैं, उसका निर्माण केवल कुछ अंदाजों व अनुमानों के आधार पर हुआ। ईसा मसीह के जाने के कई वर्षों बाद इस कैलेंडर का निर्माण किया गया। उस समय यही अंदाज़ा लगाया गया कि ईसा मसीह का जन्म जब हुआ था, तब सर्दियाँ अपने चरम पर थीं। इसलिए सर्दी के उन्हीं दिनों को नववर्ष के रूप में स्वीकार किया गया, जिसे हम 1 जनवरी कहते हैं।
इसके विपरीत भारतीय संवत् के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नवीनता की छटा अपने आप ही प्रत्यक्ष हो जाती है। एक नहीं, अनेक युक्तियाँ इस दिन को वर्ष का पहला दिवस घोषित करती हैं। चैत्र शुक्ल को सर्वप्रिय, सर्वश्रेष्ठ ऋतुराज का पूरी प्रकृति पर राज हो जाता है। उजले दिन बड़े और अंधेरी रातें छोटी हो जाती हैं। इसी के साथ प्रकृति का कण-कण, नव उमंग, उल्लास और प्रेरणा के संग, अंगड़ाई भर उठता है। यह चेतना, यह जागना, यह गति- यही तो नववर्ष के साक्षी हैं!
वैसे भी देखा जाए, तो चैत्र नक्षत्र के चमकते ही कश्मीर से लेकर केरल तक, उत्सवों के नगाड़े बज उठते हैं। जैसे- जम्मू-कश्मीर में ‘नौरोज’ या ‘नवरेह’, पंजाब में ‘वैशाखी’, महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पड़वा’, आंध्र प्रदेश में ‘युगादि’, सिंधी में ‘चेतीचंड’, केरल में ‘विशु’, असम में ‘रोंगली बिहू’, बंगाल में ‘पोयला बैशाख’, तमिलनाडु में ‘पुठन्डु’- ये सभी उत्सव भारत की सामाजिक चेतना को अपनी थाप पर थिरकाते हैं। ये एक प्रकार से नववर्ष के ही सूचक होते हैं। इसी दिन नवरात्रों का भी शुभारम्भ होता है और भारत भर में माँ जगदम्बा के जयकारे गूँज उठते हैं। अतः चैत्र शुक्ल पर ही भारत की सामाजिक चेतना नववर्ष में प्रवेश करती है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ‘शुभ मुहूर्त’ इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि इस दिन नक्षत्रों की दशा, स्थिति और प्रभाव उत्तम होता है। गणेश्यामल तंत्र के अनुसार पृथ्वी पर नक्षत्रलोक से चार प्रकार की तरंगें गिरती रहती हैं- यम, सूर्य, प्रजापति और संयुक्त। चैत्र शुक्ल को विशेष रूप से प्रजापति और सूर्य नामक तरंगों की बरखा होती है। ये सूक्ष्म तरंगें अध्यात्म बल की बहुत धनी और उत्थानकारी हुआ करती हैं। अतः यदि इस शुभ घड़ी में सुसंकल्पों के साथ नए साल में कदम रखा जाए, तो कहना ही क्या!
तो आइए, हम अपनी भारतीय संस्कृति व सभ्यता की वैज्ञानिकता व शिवमय महिमा को समझते हुए उनसे भी जुड़ें। अपने विक्रमी संवत् के अनुसार नववर्ष मनाएँ, जिसका आधार कल्पनाएँ या अनुमान नहीं, अपितु अध्यात्म और विज्ञान है। गर्व से स्वीकार करें, अपनी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, जिसके पीछे हमारे महान ऋषियों का प्रकाश है।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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