कल से 4 दिन तक चलेगा छठ पूजा का कार्यक्रम, बिहारी महासभा ने पूरी की तैयारी

उत्तराखण्ड

शुक्रवार के दिन 8 नवंबर को 1 दिन के लिए पूर्ण अवकाश की मांग
देहरादून। बिहारी महासभा की ओर से टपकेश्वर मंदिर तमसा नदी के प्रांगण में पर कद्दू भात प्रसाद की व्यवस्था की गई है सभा के सभी सदस्य  नहाए खाए प्रसाद वहीं पर ग्रहण करेंगे छठ पूजा का कल से शुरू महत्वपूर्ण दिन है। पहले दिन नहाए खाए के साथ व्रत की शुरुआत हो जाएगी फिर खरना महाप्रसाद का दिन होगा ।कहा जाता है कि पुत्र प्राप्ति के लिए लोक खरना  का व्रत करते हैं और इसके प्रसाद को बहुत आस्था के साथ ग्रहण करते हैं। बिहारी  महासभा के छठ पूजा कार्यक्रम का कल पहला दिन होगा। आज भी सभी कार्यकर्ता घाटों पर सात सज्जा एवं सफाई लाइट की व्यवस्था के लिए लगे हुए हैं। आज बिहारी महासभा के अध्यक्ष सचिव कोषाध्यक्ष और कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों ने जिलाधिकारी देहरादून को एक पत्र सौंपकर टपकेश्वर महादेव मंदिर चंद्रमणि मंदिर और विशेष रूप से प्रेम नगर पुल के नीचे छठ के कार्यक्रम में सुरक्षा व्यवस्था एंबुलेंस की व्यवस्था डॉक्टरों की व्यवस्था की मांग की है समिति के पदाधिकारियों ने एसएसपी देहरादून से भी मुलाकात कर प्रशासनिक सहयोग की अपेक्षा की है अधिकारियों से मुलाकात के बाद बिहारी महासभा के पदाधिकारियों ने पत्र के माध्यम से छठ घाट पर व्रतियों के सुविधा हेतु एवं गाड़ी के आवागमन हेतु सुरक्षा के लिए जिलाधिकारी और एसएसपी दोनों से अनुरोध किया है।
व्रतियों ने दिन में कद्दू की सब्जी और चावल खाकर पूजा की शुरुआत होगा जिसका समापन शुक्रवार अर्थात षष्ठी तिथि के दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य के साथ होगा। नहाय-खाय के दिन व्रती के साथ ही घर के बाकी सदस्य भी कद्दू की सब्जी खाते हैं। गांवों में कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके यहां छठ पर्व नहीं होता है। ऐसे लोगों के यहां जिनके यहां छठ होता है, उनके यहां से कद्दू की सब्जी देने की प्रथा है। कई जगहों पर कद्दू के साथ चना दाल खाने की भी परंपरा है।
नहाय-खाय वाले दिन से ही छठ का प्रसाद बनाने की तैयारी शुरू की जाती है। प्रसाद के लिए गेहूं और चावल की सफाई तो हालांकि पहले ही कर ली जाती है। लेकिन, उसे धोकर सुखाने, पीसने और उसके बाद उससे प्रसाद बनाने की तैयारी आज ही के दिन से शुरू होती है। व्रती के साथ घर के सदस्य मिलकर इसकी तैयारी करते हैं। छठ का प्रसाद बनाने के लिए चूल्हा और बर्तन बिल्कुल अलग होता है। इतना ही नहीं, प्रसाद बनाने में जो कोई भी साथ देता है उसके लिए भी लहसुन, प्याज इत्यादि खाना वर्जित होता है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो नहाय-खाय के दिन ही छठ के निमित्त बाजार से खरीदने वाले सामान जैसे कि टोकरी, फल, सब्जियां खरीदते हैं।
छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। कार्तिक महीने के पंचमी पर व्रती पूरे दिन व्रत रखते हैं। सूर्यास्त से पहले पानी की एक बूंद तक नहीं ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद व्रती के द्वारा ही बनाया जाता है जो विशेष रूप से नए चूल्हे पर ही बनाया जाता है। नहाय-खाय के दूसरे दिन होने वाले खरना के दिन भी व्रती पूरे दिन व्रत रखते हैं और केवल एक बार शाम को भोजन करते हैं। शाम को व्रती भगवान सूर्य का पूजन कर प्रसाद अर्पित करते हैं। शाम को चावल, गुड़ और गन्ने के रस बने रसियाव-खीर को खाया जाता है। खाने में नमक और चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। खास ध्यान यह भी रखना होता है कि एकांत में रहकर भोजन ग्रहण किया जाए। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती अपने सभी परिजनों को ‘रसियाव रोटी’ का प्रसाद देते हैं। चावल का पिठ्ठा और घी लगी रोटी भी प्रसाद में दी जाती है। इसके बाद अगले 36 घंटों के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते हैं। मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाती हैं।

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