स्वास्थ्य विभाग में मखौल बना सूचना अधिकार क़ानून,अपर निदेशक निपटा रहे हैं विभागीय अपीलें

उत्तराखण्ड
(सुरेंद्र अग्रवाल द्वारा)
देहरादून।उत्तराखंड के स्वास्थ्य महानिदेशालय में विभागीय अपीलीय अधिकारी महानिदेशक स्वास्थ्य हैं परंतु सूचना अधिकार क़ानून का मखौल उड़ाते हुए अपर निदेशक अपीलों का निस्तारण कर रहे हैं।
डॉक्टर टोलिया से मिलती रही है सराहना-
स्वास्थ्य विभाग में सूचना अधिकार क़ानून को बेहद संजीदगी से लिया जाता रहा है। प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त डॉक्टर आर एस टोलिया ने स्वयं कई सुनवाइयों में स्वास्थ्य विभाग की सराहना की है।सीएमओ/CMO हरिद्वार से सम्बंधित एक अपील में सुनवाई के दौरान डॉ. टोलिया स्वास्थ्य विभाग के सहायक लोक सूचना अधिकारी डॉ. आर.पी. चौधरी को ही जाँच अधिकारी नियुक्त कर हरिद्वार भेज चुके हैं।
संजीदगी से मखौल तक का सफ़र-
स्वास्थ्य विभाग में प्रथम अपील के दौरान अपीलीय अधिकारी अपीलकर्ताओं से सम्मानजनक व्यवहार करते हुए सुनवाई करते रहे हैं और पूरे प्रदेश में मुखिया होने के नाते अपील की सुनवाई में उजागर होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का संज्ञान लेकर उनको सुलझाने के आदेश भी दिए जाते थे।परंतु बीती 27 अक्टूबर को यह लेख एक अपील में महानिदेशालय पहुँचा तो वहाँ का नज़ारा देखकर चौंक पड़ा।महानिदेशक डॉक्टर तारा चंद पंत अपने साथियों के साथ चाय की चुस्कियों का आनंद लेते रहे और केंद्रीय प्रकोष्ठ के लोक सूचना अधिकारी/अपर महानिदेशक डॉक्टर अनूप डिमरी ही प्रथम अपीलों का निस्तारण करते रहे।
महानिदेशक सामने बैठे तमाशा देखते रहे
दो अपीलों के बाद जब इस लेखक की अपील पर सुनवाई शुरू हुई तो अपर निदेशक ने अपने से वरिष्ठ अधिकारी निदेशक (वित्त) से सवाल शुरू कर दिए।जब लेखक ने उनकी सुनवाई पर आपत्ति जतायी तो बेहद बेशर्मी से अपर निदेशक डॉक्टर डिमरी ने  हाल के दूसरे छोर पर बैठे महानिदेशक की ओर इशारा करके कहा कि वो उधर सामने बैठे तो हैं। महानिदेशक डा0 पन्त तब भी कुर्सी पर बैठे तमाशबीन रहे।
व्यापक जनहित की मांगी गई थी सूचना
सरकारी अस्पतालों में बदइंतजामी के चलते आये दिन मरीजों की जिन्दगी खतरे में पड़ जाती है, जब इस बदइंतजामी की वजह तलाशी गई तो ज्ञात हुआ कि आधा वित्तीय वर्ष बीत जाते के बावजूद अस्पतालों को चिकित्सा प्रबन्धन समितियों द्वारा स्वीकृत बजट में से एक पाई भी प्राप्त नहीं हुई। अस्पतालों में मरीजों को होने वाली असुविधा की मूल वजह बजट प्राप्त न होना रहा। जब यह सूचना मांगी गई कि ‘‘आधा वित्तीय वर्ष बीत जाने के बावजूद अस्पतालों में बजट न पहुंचने के कारण मरीजों को होने वाली असुविधा के लिये जो अधिकारी जिम्मेदार हैं, उनके नाम, पदनाम की सूचना प्रदान करें’’, तो व्यापक जनहित की इस सूचना को धारा 2(च) से आच्छादित न होना बता कर पल्ला झाड़ लिया गया।
बदहाली के लिये यह सोच ही है जिम्मेदार
सरकारी सेवाओं, उदाहरणतः स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के लिये अस्पताल प्रबन्धन के बजाय असली दोषी स्वास्थ्य महानिदेशालय जैसे विभागों के मुखिया से लेकर तमाम जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारीगण हैं, जो बेशर्मी की चादर ओढ़ कर अपने विधिक उत्तरदायित्व व जनता के प्रति अपने कर्तव्यों के निवर्हन से सदैव बचते दिखाई देते हैं।

 

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