देहरादून। पूर्वी बिहार, झारखंड और पूर्वी यूपी में प्रचलित छठ पूजा की तैयारियां दून में भी शुरू हो गई है। दीपावली पूजन के बाद छठ पूजा बड़ा उत्सव है, जो संतान प्राप्ति व परिवार के खुशहाल रहने के लिए की जाती है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा की जाती है। यह व्रत तीन दिनों तक चलता है। पूजा का शुभारंभ आठ नवंबर से है। छठ पूजा एकमात्र त्यौहार है, जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। पहली शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ अगली सुबह अर्घ्य देकर व्रत सम्पूर्ण होता है। इसलिए सूर्योपासना के इस पर्व को सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है। 8 नवंबर को नहाय-खाए से छठ पूजा प्रारंभ होगी। 9 नवंबर को खरना, 10 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य व 11 को उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ छठ पूजा का समापन होगा। खरना वाले दिन महिलाएं व्रत रखती है, रात में खीर खाकर 36 घंटे का कठिन व्रत रखा जाता है। खरना के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। खरना के अगले दिन छठ मैया और सूर्य देव की पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्य डा.सुशांतराज के अनुसार, छठ पूजा के लिए इन चीजों की जरूरत होती है, प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए गिलास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी, शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई। दून में मालदेवता, टपकेश्वर, नेहरु कॉलोनी रिस्पना पुल, नंदा की चौकी, नेहरुग्राम, प्रेमनगर, पटेलनगर, निरंजनपुर, माजरा, क्लेमउनटाउन आदि जगहों पर छठ पूजा के घाट बने हुए हैं। जहां पर बिहारी महासभा, पूर्वा सांस्कृतिक मंच समेत अन्य सामाजिक संगठन छठ पूजा की सार्वजनिक रुप से व्यवस्थाएं करते हैं। पिछली दफा कोविड के कारण बेहद सीमित रुप से इस उत्सव को मनाया गया था। लेकिन इस बार छठ पर अच्छी भीड़ भाड़ रहने की उम्मीद है।