अंधेरी सुरंग के अंत में प्रकाश

आध्यात्मिक उत्तराखण्ड

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से जुड़े विवाद के कारण पिछले कुछ हफ्तों में पूरे भारत में तनावपूर्ण क्षण देखे गए। मामला वर्तमान में विचाराधीन है और फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की जा रही है। विचाराधीन होने के बावजूद मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। पूरे देश में इसी तरह की आवाजें सुनाई दीं जिनमें कई प्राचीन मस्जिदों को मंदिर होने का दावा किया गया, जिन्हें मुस्लिम आक्रमणकारियों-शासकों द्वारा नष्ट कर दिया गया और मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया गया। इसने भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए वास्तविक खतरा पैदा कर दिया। ऐसे तनावपूर्ण क्षणों के बीच, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान राहत के रूप में आया। भागवत ने हाल ही में हर मस्जिद में एक शिवलिंग की तलाश करने की आवश्यकता पर सवाल उठाया और घोषणा की कि आरएसएस
भविष्य में इस तरह के आंदोलनों का समर्थन करने के पक्ष में नहीं है। इस बयान से नफरत फैलाने वाले तत्वों का मनोबल गिराने की उम्मीद है जो सस्ते राजनीतिक लाभ के लिए देश के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ना चाहते थे। भागवत की यह टिप्पणी कि ज्ञानवापी विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं और इस पर अदालत के फैसले को सभी को स्वीकार किया जाना चाहिए। दोनों पक्षों के याचिकाकर्ताओं को शांत करने के लिए निश्चित है। यह समझना आवश्यक है कि आवेशित वातावरण केवल दोनों पक्षों के लिए परेशानी लाएगा और आने वाली तबाही में, मुट्ठी भर राजनीति से प्रेरित व्यक्तियों-संगठनों को सबसे अधिक लाभ होगा। यह एक सच्चाई है कि अशफाकउल्लाह खान के बलिदान, वीर अब्दुल हमीद की वीरता और भारत को मजबूत बनाने में एपीजे अब्दुल कलाम के अनुकरणीय योगदान को देश नहीं भूल सकता। हम मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को भी नहीं भूल सकते, जिन्होंने खुले तौर पर पाकिस्तान के विचार की निंदा की और मुस्लिम लीग के बजाय कांग्रेस का साथ दिया। इस पृष्ठभूमि में, आइए मोहन भागवत के एक हालिया बयान को याद करें जिसमें उन्होंने कहा था,‘‘ मस्जिद में जो होता है वह भी प्रार्थना का एक रूप है, भले ही ईमान बाहर से आया हो, इसे स्वीकार करने वाले मुसलमान बाहरी नहीं हैं। हिंदुओं को किसी भी प्रकार की पूजा का विरोध नहीं करना चाहिए। भारत वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा में विश्वास करता है। सदियों से, भारत ने सभ्यताओं के पिघलने वाले बर्तन के रूप में काम किया है, सभी प्रकार की संस्कृतियों, नस्लों, धर्मों का खुले हाथों से स्वागत किया है। देश की इस कठोर संरक्षित विशेषता को मंदिर-मस्जिद बहस के जाल में फंसकर कमजोर नहीं होने देना चाहिए’’। जैसा कि भागवत ने ठीक ही कहा है, काशी और मथुरा जैसे मुद्दों में लिप्त होने के बजाय चरित्र निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। कुरान 59ः23 कहता है कि, ‘‘शांति’’ खुद भगवान के नामों में से एक है। मोहन भागवत ने अपने हालिया बयानों के जरिए मुसलमानों को जैतून की एक शाखा भेंट की। कुरान की शिक्षाओं और कई भविष्यवाणी परंपराओं के अनुसार, अब मुसलमानों पर शांति का संदेश देने और उसे कायम रखने की जिम्मेदारी है। आइए राजनीतिक आकाओं के हाथों में न खेलें और लाखों युवाओं के भविष्य को आकार देने पर ध्यान दें।
                                                                            प्रस्तुतिः- अमन रहमान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *