आकाशवाणी केन्द्र देहरादून से प्रसारित कहानी ‘‘डाक्टर-साहब’’ ने रेखांकित किया जीवन के उच्च मानदण्डों को

उत्तरप्रदेश उत्तराखण्ड

(सुरेन्द्र अग्रवाल द्वारा)
देहरादून। चिकित्सा के पेशे में दिनोंदिन अधिक से अधिक धन कमाने की बढ़ती चाहत को दरकिनार कर एक ईमानदार डाक्टर किस प्रकार गरीब मरीजों को सस्ता इलाज उपलब्ध कराने के प्रयास में जुटा रहता है, उसी को सुन्दर तरीके से रेखांकित किया गया है श्री सतीश शुक्ला के कहानी संगृह ‘‘आस-पास’’ की एक कहानी ‘‘डाक्टर-साहब’’ में, जिसका प्रसारण पिछले दिनों आकाशवाणी के देहरादून केन्द्र से किया गया है।
‘‘डाक्टर साहब’’ नामक कहानी में एक ईमानदार चिकित्सक की कहानी को बेहद भावपूर्ण व प्रेरक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। धरती पर कार्यरत किसी भी पेशे यथा इंजीनियर अफसर टीचर इत्यादि को भगवान की संज्ञा नहीं दी गई है केवल चिकित्सक को ही इंसानों की इलाज से समय-समय पर जान बचाने के कारण ‘‘धरती पर भगवान’’ तक कहा गया है। परन्तु कहानी में दर्शाया गया है कि किस प्रकार बहुत से चिकित्सक स्वार्थी एवं बेईमान तत्वों के हाथों का खिलौना केवल धन लालसा के कारण बन जाते हैं। कहानी के अन्त में उस चिकित्सक की ईमानदारी से परेशान रहने वाली उसकी पत्नी का हृदय परिवर्तन भी दर्शाया गया जो ईमानदारी के मार्ग पर चलने वाले नागरिकों को निसंदेह सर्वाधिक प्रभावित करेगा।

-श्री सतीश शुक्ल भी सेवाकाल में प्रस्तुत कर चुके हैं उच्च मानदण्डों का उदाहरण
बुन्देलखण्ड के झांसी जनपद के मूल निवासी श्री सतीश शुक्ला जी सेवानिवृत्त डी0आई0जी0 हैं। उन्होंने अपनी सेवाकाल में सदैव एक मिलनसार, सादगी पूर्ण पुलिस अधिकारी का जीवन बिताया है। इस कहानी से यह भी आभास होता है कि धन की लालसा की तुलना में कर्तव्य परायणता को तरजीह देने वाली काल्पनिक कहानी वही लिख सकता है जो स्वयं भी ऐसी ही सोच रखता हो।

-डा0 कुश ऐरोन में दिखता है ऐसा ही चिकित्सक
राजकीय कोरोनेशन चिकित्सालय देहरादून में पदस्थ वरिष्ठ सर्जन डा0 कुश ऐरोन में भी कहानी में वर्णित चिकित्सक की छवि झलकती हैं। उन्हें भी गरीब असहाय श्रेणी के मरीजों के इलाज में पूर्ण मनोयोग से तल्लीन देखा जा सकता है। उन्हें सदैव इस बात की चिन्ता में देखा जाता है कि कहीं किसी मरीज से किसी ने पैसे तो नहीं ऐंठ लिये हैं।

-डा0 गोविन्द पुजारी भी तल्लीन दिखते हैं गरीब मरीजों के इलाज में
राजकीय कोरोनेशन चिकित्सालय, देहरादून में ही पदस्थ बालरोग विशेषज्ञ डा0 गोविन्द पुजारी में भी ऐसी कर्मठता प्रदर्शित होती है। इस लेखक की छोटी बेटी को कुछ माह पहले हैपटाइटिस (पीलिया) हो गया था। ज बवह बेटी को प्राइवेट नर्सिंग होग ले जाने के लिये डा0 पुजारी से रिफर कराने गये तो वह असहज हो गये। उन्होंने कई बार यह कहा कि यहीं इलाज हो जायेगा क्यों नर्सिंग होम ले जा रहे हो। यही नहीं पूरे इलाज के दौरान कई बार ब्लड जांच करानी पड़ी। उन्होंने प्राइवेट पैथोलोजी के बजाय सरकारी अस्पताल में ही जांच कराने को कहा।

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