सीतावनी/हल्द्वानी। भारतीय वाल्मीकि धर्म समिति द्वारा गुरूवार को सीतावनी में श्रद्धापर्व का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि परिवहन एवं समाज कल्याण मंत्री श्री यशपाल आर्य ने महर्षि वाल्मीकि प्रतिमा पर माल्यापर्ण किया।
इस अवसर पर उपस्थित श्रद्वालुओं एव वाल्मीकि समाज के लोगो को सम्बोधित करते हुये मंत्री श्री आर्य ने कहा रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि ने सीतावनी मे रहकर धर्म ग्रंथ का सृजन किया तथा मां सीता ने भी इसी वन मे आश्रय पाया। आज के दौर मे भी महर्षि वाल्मीकि के आदर्श सिद्वान्त एवं शिक्षायें सर्वमान्य है। उन्होने कहा कि सीतावनी को वाल्मीकि पर्यटक स्थल के रूप मे विकसित किये जाने के लिए भरसक प्रयास किये जायेगे इस सम्बन्ध मे वह स्वयं मुख्यंमत्री से वार्ता करेंगे। उन्होने कहा कि सीतावनी वन अधिनियम के अन्तर्गत आच्छादित वन क्षेत्र है ऐसे मे यहां निर्माण कार्यो के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार से अनुमति प्राप्त की जायेगी और प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्ताव भी भेजा जायेगा।
श्री आर्य ने अपने सम्बोधन मे कहा कि दलित एवं वाल्मीकि समाज को अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए एक जुट होना होगा साथ ही शिक्षित भी होना होगा। उन्होने कहा कि समाज के उत्थान के लिए सरकार द्वारा अनेक जनकल्याणकारी योजनायें संचालित की जा रही है। सभी उसका लाभ उठाये और विकास की धारा मे शामिल हों।
समिति के राष्ट्रीय प्रमुख भावाधस भीम अनार्य ने अपने सम्बोधन मे समाज की समस्यायंे रखते हुये ज्ञापन मंत्री श्री आर्य को दिया। श्री अनार्य ने कहा कि वाल्मीकि समाज की शिक्षा के लिए कुमायू एव गढवाल मे एक-एक वाल्मीकि आवासीय विद्यालय खोला जाए इसके साथ ही भण्डारपानी से धुनासाहिब तक मार्ग निर्माण किया जाए तथा धुनासाहिब चोटी पर वाल्मीकि जी का भव्य मन्दिर बनाया जाए, सीतावनी को वाल्मीकि तीर्थस्थल के रूप मे विकसित करते हुये इसके रखरखाव का जिम्मा समाज को ही दिया जाए। इसके साथ ही सीतावनी में वाल्मीकि समाज के तीर्थ यात्रियो के लिए धर्मशाला का निर्माण भी कराया जाए।
कार्यक्रम मे पूर्व विधायक संजय कूपर,अब्दुल तारिक,वीरेश श्रेष्ठ ओम प्रकाश भटटी, वीरेश भीमसिह अनार्य, वीर हंसराज कटारिया, वीरश्रेष्ठ अशोक राही, शिवनन्दन टाक,डा0 दशरथ सिह,पूर्व मंत्री प्रभुदयाल वाल्मीकि के अलावा, कैलाश विक्रम,सुभाष वाल्मिकी, पवन अनार्य, धर्मवीर,अनिल कुमार, गुरूदेव वाल्मीकि, सुशील भारती के अलावा बडी संख्या मे श्रद्वालु आदि मौजूद थे।