समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं को जन्म के बाद कितनी ऑक्सीजन की होती है जरूरत

दिल्ली
  • नए प्रमाण में सामने आया है कि ज्यादा सांद्रता की ऑक्सीजन देकर समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं की मौतों को रोका जा सकता है

नई दिल्ली। सिडनी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में सामने आया है कि जन्म के तुरंत बाद 90 से 100 प्रतिशत सांद्रता की ऑक्सीजन देकर समयपूर्व जन्मे शिशुओं की मौत का जोखिम कम किया जा सकता है, जिन्हें साँस लेने में दिक्कत होती है।
सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए नए अनुसंधान में सामने आया है कि समयपूर्व जन्मे शिशुओं को जन्म के तुरंत बाद कम सांद्रता की ऑक्सीजन देने की बजाय उच्च सांद्रता की ऑक्सीजन देकर मौत के जोखिम में 50 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है।
समयपूर्व जन्म लेने वाले बच्चों को कभी-कभी साँस लेने में दिक्कत हुआ करती है क्योंकि उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ करते हैं। ऐसे शिशुओं को साँस लेने में मदद करने के लिए डॉक्टर उन्हें ब्रेदिंग मास्क या ब्रेदिंग ट्यूब द्वारा ऑक्सीजन दे सकते हैं।
जामा पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित एक अध्ययन में समयपूर्व जन्म लेने वाले एक हजार से ज्यादा शिशुओं को अलग-अलग ऑक्सीजन की सांद्रता देकर क्लिनिकल ट्रायल के आँकड़े व परिणामों का परीक्षण किया गया। उन्हें ऑक्सीजन की कम सांद्रता (30 प्रतिशत), मध्यम सांद्रता (50 से 65 प्रतिशत) और उच्च सांद्रता (90 प्रतिशत) दी गई।
इस अध्ययन में पाया गया कि समयपूर्व, 32 हफ्ते (नौ महीने के पूर्ण गर्भकाल से कम) से कम समय में जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए, ऑक्सीजन की उच्च सांद्रता (90 प्रतिशत या ज्यादा) के साथ रिससिटेशन शुरू करके उनके जीवित बचने की दर ऑक्सीजन के कम स्तर (21 से 30 प्रतिशत) के मुकाबले बढ़ाई जा सकती है।
तुलना के लिए हम जिस हवा में साँस लेते हैं, यानी कमरे की हवा में ऑक्सीजन की मात्रा 21 प्रतिशत होती है।
जिन शिशुओं को साँस लेने में मदद की जरूरत होती है, उन्हें डॉक्टर एक डिवाईस की मदद से ऑक्सीजन देते हैं, जो ऑक्सीजन को अपेक्षित सांद्रता तक पहुँचाने के लिए मिश्रित करती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि शुरुआत में उच्च सांद्रता की ऑक्सीजन देने से स्वतंत्र श्वसन तेजी से शुरू हो सकता है, लेकिन इसके कारणों के बारे में जानने के लिए अभी और अनुसंधान किए जाने की जरूरत है।
शोधकर्ता इस बात पर बल देते हैं कि उनके इस निष्कर्ष की पुष्टि करने के लिए अभी काफी अध्ययन किया जाना जरूरी है, और उच्च ऑक्सीजन देना शुरू करने के बाद भी इसे तुरंत कम स्तर पर लाना आवश्यक होगा ताकि हाईपरॉक्सिया (ऑक्सीजन पॉईज़निंग) न हो।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि नवजात शिशु को पहले 10 मिनट में ऑक्सीजन कैसे दी जाती है। डॉक्टर शिशु को शुरू में उच्च सांद्रता की ऑक्सीजन दे सकते हैं, लेकिन फिर उनके वाईटल्स की निगरानी करते हुए लगातार उसे एडजस्ट कर सकते हैं ताकि ऑक्सीजन का अत्यधिक ज्यादा या कम संपर्क न हो।
यदि भविष्य के अध्ययनों में इस खोज की पुष्टि हो जाती है, तो यह मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय मान्यताओं को चुनौती दे रही है, जिसके अंतर्गत समयपूर्व शिशुओं को अतिरिक्त ऑक्सीजन की बजाय उतनी ही ऑक्सीजन, यानी 21 प्रतिशत से 30 प्रतिशत ऑक्सीजन (कमरे की हवा) दिए जाने की सिफारिश की जाती है, जो गर्भकाल की पूर्ण अवधि में जन्म लेने वाले बच्चों को दी जाती है।
इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सभी के लिए एक ही उपाय काम नहीं कर सकता है, और हो सकता है कि समयपूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं की आवश्यकताएं समय पर जन्मे बच्चों से अलग हों।
पूरे विश्व में हर साल 13 मिलियन से ज्यादा शिशु समयपूर्व जन्म लेते हैं, और लगभग 1 मिलियन जन्म के कुछ समय बाद ही मर जाते हैं।
सिडनी विश्वविद्यालय के एनएचएमआरसी क्लिनिकल ट्रायल्स सेंटर के मुख्य लेखक, डॉ. जेम्स सोटिरोपोलस ने कहा, ‘‘अगर समयपूर्व जन्मे शिशुओं को शुरू से ही सही इलाज मिल जाए, तो वो एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं। और इलाज शुरू करने का सबसे अच्छा समय जन्म के तुरंत बाद होता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा उद्देश्य होना चाहिए – सही संतुलन बनाना, यानी हम मृत्यु और विकलांगता से बचाने के लिए उतनी ही पर्याप्त ऑक्सीजन दें, जिससे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान न पहुँचे।’’
उन्होंने आगे बताया, ‘‘ये परिणाम आशाजनक और भविष्य में प्रक्रिया को बदलने वाले हैं, पर इनके लिए विस्तृत अध्ययन करके इनकी पुष्टि किए जाने की जरूरत है।’’
इतिहास में सभी नवजात शिशुओं को साँस लेने में मदद करने के लिए 100 प्रतिशत सांद्रता की ऑक्सीजन दी जाती थी। लेकिन अध्ययनों में पाया गया कि ज्यादा समय तक ऑक्सीजन की उच्च सांद्रता देने से हाईपरॉक्सिया हो सकता है, एवं अंगों को नुकसान पहुँच सकता है। इसलिए 2010 में अंतर्राष्ट्रीय इलाज के परामर्शों में परिवर्तन करके समयपूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए मिश्रित ऑक्सीजन (कम ऑक्सीजन से शुरू करके) दिए जाने की सिफारिश की गई।
हालाँकि शोधकर्ताओं का मानना है कि यह परिवर्तन समय पर जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए मिले प्रमाणों पर आधारित था, जिनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित होते हैं और जो समयपूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं के समान बीमार नहीं होते।
समयपूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए सर्वश्रेष्ठ अभ्यासों का मार्गदर्शन देने के लिए विश्व में आज तक बहुत कम प्रमाणित जानकारी उपलब्ध है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि इन परिणामों से हाईपरॉक्सिया के खतरे कम नहीं होते हैं।
डॉ. एना लेने सीडलर, एनएचएमआरसी क्लिनिकल ट्रायल्स सेंटर ने कहा, ‘‘इस बारे में वार्ता अभी भी चल रही है कि समयपूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए लगभग कितनी ऑक्सीजन सबसे अच्छी है। सभी का उद्देश्य नवजात शिशुओं के लिए सर्वश्रेष्ठ इलाज का निर्धारण करना है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन एवं इस समय चल रहे अन्य अनुसंधानों से सबसे नाजुक समयपूर्व जन्मे बच्चों को जीवित बचाने के सर्वश्रेष्ठ अवसर प्रदान करने में मदद मिल सकती है।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमें इस मामले में अत्यधिक सहयोगपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समूह के साथ काम करने का अवसर मिला, जिनमें से कुछ दशकों से इस विषय में अध्ययन कर रहे हैं। इस समूह की विस्तृत विशेषज्ञता और अनुभव इस काम की सबसे बड़ी शक्ति हैं।’’

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